शेयर मार्केट में मार्जिन क्या होता है?

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Share Market Me Margin Kya Hota Hai

Share Market में मार्जिन क्या होता है? अगर आप शेयर मार्किट में नये है, तो आपको इसके बारे में जरूर जानना चाहिए। हालाकिं जो लोग पहले से शेयर मार्किट में है, उन्हें शेयर बाजार में मिलने वाले मार्जिन के बारे में पहले से पता होता है। यह एक प्रकार की सुविधा होती है, जो आपको ब्रोकर द्वारा दी जाती है। आप मार्जिन के साथ बिना ज्यादा जोखिम उठाये, अच्छा लाभ कमा सकते है। आइये जानते है, Share Market Me Margin Kya Hota Hai विस्तार से :

शेयर मार्केट में मार्जिन क्या होता है?

अगर आप शेयर बाजार में ट्रेडिंग करते हैं, और आपको किसी बेहद आकर्षक डील के बारे में पता चले पर इसके लिए आपके डीमैट अकाउंट में पर्याप्त रकम न उपलब्ध हो तो आप अपने ब्रोकर से ‘मार्जिन’ यानी उधार की सहूलियत ले सकते हैं। शेयर मार्केट में मार्जिन का अर्थ उस धनराशि से है जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में उपलब्ध होती है।

तकनीकी तौर पर इसी से आपको ‘शेयर्स’ खरीदने की इजाजत होती है। पर व्यवहार में शेयर की खरीद-फरोख़्त से संबंधित कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने ग्राहकों को शेयरों की खरीद के लिए ‘फ़ाइनैंस-फैसिलिटी’ भी प्रदान करती हैं, यानी शेयर खरीदने के लिए उधार देती हैं। इसी को ‘लिवरेज’ या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं।

मार्जिन पर, यानी ब्रोकिंग फर्म से ऋण प्राप्त कर शेयरों को खरीदने पर, खाते में उपलब्ध वास्तविक धनराशि से खरीदने की तुलना में आप अपने ‘रिटर्न’ यानी लाभों को कई गुना तक बढ़ा सकते हैं। हालांकि इसके लिए जरूरी है कि किया गया निवेश ऋण की लागत से बेहतर प्रदर्शन करता रहे।

आसान शब्दों में कहें तो शेयर बाजार में मार्जिन एक उधार की सुविधा है, जो आपके ब्रोकर से आपको निवेश के लिए मिलती है। इसकी मदद से आप अपने डीमैट खाते को ‘ओवरड्राइव’ कर उपलब्ध राशि से अधिक भुगतान कर सकते हैं, जिससे बिना ज्यादा जोखिम बढ़ाये आप अपने ‘प्रॉफ़िट’ को बढ़ा सकते हैं। इसमें ब्रोकर स्टॉक्स को ‘कोलैटरल’ की तरह लेता है और आपको व्यापार हेतु अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है। इसे ‘सिक्यूरिटी लोन’ भी कहते हैं।

शेयर मार्केट में मार्जिन कैसे काम करता है 

आपका ब्रोकर अगर आपको शेयरों पर ‘एमएएस’ यानी मार्जिन सुविधा प्रदान करता है तो इसकी प्रक्रिया कुछ इस तरह आगे बढ़ती है –

ब्रोकर के लाभार्थी खाते में ग्राहक के खाते से शेयर ट्रांसफर किया जाता है, एक डिपॉज़िटरी पार्टनर के तौर शेयर ब्रोकर द्वारा आगे शेयरों को ग्राहक के मार्जिन खाते में बदल दिया जाता है, मार्जिन की यह रकम शेयरों की कीमत पर निर्भर करती है; ‘हेयर-कट’ घटाने के बाद की जाती है।

बता दें कि शेयर मार्केट में हेयर कट का मतलब कोलैटरल द्वारा निवेश के लिए उपयोग में लाई गई राशि और संपत्ति के बाजार मूल्य के अंतर से होता है। मार्जिन की रकम का उपयोग किसी ग्राहक द्वारा शेयर मार्केट में इंट्रा-डे ट्रेडिंग के अलावा स्टॉक्स ट्रेडिंग, इक्विटी वायदा कारोबार, मुद्रा में निवेश जैसे सौदों में भी किया जा सकता है।

हालांकि इसे इक्विटी की डिलीवरी के लिए नहीं उपयोग किया जा सकता। कोई ग्राहक यानी क्लाइंट जब ब्रोकर्स द्वारा प्रदान की जाने वाली इस उधार सुविधा या मार्जिन धनराशि का उपयोग न करना चाहे तो वह अपने ‘कोलैटरल स्टॉक’ को वापस ले सकता है।

शेयर मार्केट में मार्जिन की सहूलियत प्राप्त करने की प्रक्रिया व लागत 

आपका शेयरों पर मार्जिन सुविधा दिलाने वाला ‘एमएएस’ खाता आपके शेयरों की खरीद-फरोख़्त से जुड़े डी-मैट खाते से अलग होता है। कुछ ब्रोकर्स मार्जिन खाते को ‘एक्टिव’ करने के लिए आपसे कुछ शुरुआती जमा करने को कह सकते हैं। जब मार्जिन खाते में धन समाप्त हो जाता है

तो इस शुरुआती मार्जिन को बरकरार रखने के लिए ब्रोकर आपसे और रकम जमा करने को कह सकता है। हालांकि ब्रोकर्स अमूमन आपसे मार्जिन खाते को संचालित अथवा ‘मैनेज’ करने की कोई फीस नहीं लेते; पर आप ‘अतिरिक्त-शुल्क’ अपने मार्जिन खाते में ‘ऑफ़ मार्केट’ ट्रांसफर कर सकते हैं।

सनद रहे कि ‘इंट्रा-डे’ ट्रेडिंग के दौरान दिन में कभी भी आपके द्वारा अगर ‘मार्जिन’ प्रावधानों का उल्लंघन किया जाता है तो इसके लिये आपको प्रतिदिन 0.07% का दण्ड-शुल्क यानी ‘फ़ाइन’ भरना होगा।

शेयर मार्केट में मार्जिन सुविधा लेने पर शेयरों के स्वामित्व का करता होता है –

शेयर मार्केट में किसी क्लाइंट द्वारा निवेश के लिए अपने ब्रोकर से मार्जिन यानी उधार सुविधा प्राप्त करने से शेयरों का स्वामित्व नहीं बदलता। यानी ब्रोकर से उधार सुविधा प्राप्त करने पर भी क्लाइंट का शेयरों पर स्वामित्व बना रहता है। और अगर क्लाइंट ब्याज का भुगतान करने जैसे कुछ उत्तरदायित्व निभाता रहता है

तो वह कितनी भी समय-सीमा तक ‘मार्जिन’ का इस्तेमाल कर सकता है। मार्जिन खाते से शेयरों की बिक्री के समय यह प्रक्रिया ब्रोकर के पास जाती है, जिसे वह आपके मार्जिन खाते में समायोजित यानी ‘एडजस्ट’ कर देता है।

शेयर बाजार में ‘मार्जिन’ का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखने वाली कुछ बातें –

शेयर मार्केट में मार्जिन सुविधा लेने से पहले ये समझ लें कि सिर्फ कुछ ख़ास प्रतिभूतियों पर मार्जिन के लिए ‘कोलैटरल’ का तरीका उपयोग किया जाता है। इसलिए जरूरी है कि पहले आप अपने ब्रोकर से उन स्टॉक्स, बांड्स वगैरह की एक लिस्ट प्राप्त कर लें जो ‘मार्जिन-एडवांस’ के लिए प्रयोग में लाये जा सकते हों। जब आप शेयर वगैरह खरीदने के लिए ऋण यानी मार्जिन हेतु अनुरोध करते हैं तो ब्रोकर एक्सचेंज ‘हेयर-कट’ काटकर धनराशि बढ़ा देता है।

इसके अलावा जिस एक्सचेंज से आप शेयरों के सौदे करते हैं उसकी तरफ से भी इस संबंध में कुछ नियम और शर्तें यानी प्रतिबंध लगाए जाते हैं। जैसे कि अगर ‘एक्सचेंज’ की ओर से 50-50 का नकद और कोलैटरल अनुपात निर्धारित किया गया है तो इसका मतलब है कि कुल निवेश की जाने वाली धनराशि का पचास फीसदी आपके पास नकद होना चाहिए,

फिर बाकी पचास फीसदी रकम ‘मार्जिन’ के तौर पर उपलब्ध होगी। यानी मिसाल के लिए अगर आपको हजार रूपए की दर से किसी कंपनी के सौ शेयरों की खरीद के लिए एक लाख रूपए चाहिए तो इसका पचास फीसदी यानी पचास हजार रूपए आपके खाते में नकद उपलब्ध होने चाहिए।

शेयर मार्केट में मार्जिन का इस्तेमाल करने पर फायदे-नुकसान का क्या होगा –

अगर मार्जिन खाते का उपयोग करके आपके द्वारा किए गए निवेश वाले शेयर या परिसंपत्ति का बाजार-मूल्य बढ़ जाता है तो आप अपने वास्तविक नकद निवेश की अपेक्षा कहीं ज्यादा फायदा क्या लेते हैं।

ऐसे में आपको मिलने वाले लाभों को मार्जिन राशि में कटौती करके ‘एडजस्ट’ कर दिया जाता है।

लेकिन अगर मार्जिन खाते का इस्तेमाल करके आपके द्वारा किया गया निवेश नुकसान में जाता है, तो ब्रोकर द्वारा एक ‘कोलैटरल’ की हैसियत से गिरवी शेयरों को बेचकर भी मार्जिन की धनराशि को ‘एडजस्ट’ किया जा सकता है।

शेयर मार्केट में मार्जिन के लिए ‘सेबी’ का नया नियम –

मालूम हो कि शेयर मार्केट के कारोबार को नियमित व नियंत्रित करने वाली संस्था स्टॉक एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया यानी ‘सेबी’ ने मार्जिन के इस्तेमाल को लेकर कुछ नये प्रावधान किए हैं। ऐसा शेयर बाजार में निवेशकों की सुरक्षा के साथ ही बाजार जोखिम को कम करने के लिए किया गया है।

वास्तव में सेबी ने मार्जिन से संबंधित दो नियम लागू किए हैं। इनमें पहला ‘कैश मार्केट अपफ्रंट मार्जिन’ से जुड़ा है। जिसका मतलब ऐसे ‘ट्रांज़ैक्शन’ से है जिसमें शेयरों की डिलीवरी होती है। जबकि सेबी का दूसरा नियम ‘पीक मार्जिन रिपोर्टिंग’ को लेकर है, जो ‘डेरिवेटिव-ट्रेडिंग से ताल्लुक रखता है।

दरअसल इसके पहले शेयर मार्केट में शेयरों की बिक्री के बाद उसकी डिलीवरी के लिए ‘टी+2’ मॉडल चलता था। यानी कि आप जिस भी दिन शेयरों की ट्रेडिंग या खरीद करते हैं उसके अगले दो दिन में वह डेबिट/क्रेडिट होगा, और आपके अकाउंट से ट्रांज़ैक्शन भी अगले दो दिनों में होगा। इस तरीके में ब्रोकर्स अपने क्लाइंट्स को खाते में रूपए न होने पर भी शेयरों के खरीद की इजाजत इस शर्त पर देते हैं कि रकम टी+1 या टी+2 यानी सौदे के एक-दो दिनों के अंदर चुका दी जाएगी।

पर अब सेबी के नाते नियमों के मुताबिक ब्रोकर को सौदे के कुल मूल्य का बीस फ़ीसदी क्लाइंट से ‘अपफ्रंट’ लेना होगा। यानी ट्रेडिंग के वक्त क्लाइंट को बीस फ़ीसदी रकम चुकानी ही होगी। बाकी धनराशि वह टी+1 या टी+2 यानी अगले दो-एक दिन में जमा कर सकता है। इसी तरह नये नियमों के अनुसार शेयरों को बेचते समय भी आपके खाते में मार्जिन की पर्याप्त रकम होनी चाहिए।

इस नियम से किसी क्लाइंट द्वारा शेयर खरीदने पर अगले दो दिनों में खाते से रकम कटने से पहले ही किसी और को शेयर-ट्रांसफ़र करने की संभावनाएं कम हो जाती हैं, और इस तरह ‘सेटलमेंट-सिस्टम’ में जोखिम कम हो जाता है।

हालांकि सेबी द्वारा शेयरों को बेचने की व्यवस्था बिना मार्जिन के भी दी गई है। पर इसके लिए ब्रोकर के पास कुछ ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि शेयरों की बिक्री के दिन ही वह उन्हें क्लाइंट के खाते से अपने खाते में स्थानांतरित यानी ट्रांसफ़र कर ले। पर इसमें भी कुछ ‘ऑपरेशनल दिक्कतें’ पेश आ सकती हैं।

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निष्कर्ष –

इस तरह हम देख सकते हैं कि शेयर बाजार में मार्जिन अकाउंट आपको अपनी वास्तविक खरीद क्षमता से कई गुना ज्यादा निवेश की सहूलियत उपलब्ध कराता है। पर इसके इस्तेमाल में हमें आवश्यक सावधानियां भी बरतनी चाहिए। क्योंकि इसमें हानियां भी लाभों की तरह ही कहीं ज्यादा हो सकती हैं।

मार्जिन खाते के साथ ट्रेडिंग करने के लिए सबसे पहले आपको यह खाता खुलवाने के लिए अपने ब्रोकर के पास रिक्वेस्ट करनी होती है, और शुरुआती तौर पर इसके लिए एक न्यूनतम निर्धारित धनराशि जमा करनी होती है जिसे मिनिमम मार्जिन कहते हैं।

मार्जिन अकाउंट से ट्रेडिंग करते हुए आपको मोटे तौर पर तीन ‘स्टेप्स’ ख़्याल में ले लेने चाहिए – मिनिमम मार्जिन को बनाए रखना, हर ट्रेडिंग सत्र खत्म होते अपनी पूर्व-अवस्था पर आना यानी खरीदे हुए शेयर्स बेचना अथवा मार्जिन का उपयोग कर बेचे गये शेयरों को समय रहते वापस खरीद लेना, और तीसरा ट्रेडिंग के बाद शेयर्स को ‘डिलीवरी ऑर्डर’ में बदलना।

इस तरह हम देखते हैं कि हालांकि शेयर बाजार में मार्जिन का इस्तेमाल करते हुए ट्रेडिंग करने के लिए कुछ एहतियात वह सतर्कतायें जरूरी होती हैं, पर यदि हम उन जरूरी बातों का ध्यान रखें तो मार्जिन सुविधा के उपयोग से शेयर बाजार में अपने वास्तविक उपलब्ध धनराशि से ज्यादा निवेश करके कहीं अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

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