जरबेरा का फूल और खेती की जानकारी

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Gerbera Flower in Hindi

इस पोस्ट में हम (Gerbera Flower in Hindi) जरबेरा के फूल और जरबेरा के पौधे के बारे में एक विस्तृत जानकारी के बारे में जानेगे जरबेरा का फूल सबसे ज्यादा अपनी ताजगी के लिए लोक्रपिय है। यह पेड़ से टूटने के बाद भी कई दिनों तक ताज़ा बना रहता है। यह फूल सूरजमुखी के परिवार से सम्बन्ध रखता है। इसलिए इस फूल को विदेशी सूरजमुखी या छोटा सूरजमुखी के नाम से भी जाना जाता है।

फूल प्रकृति का उपहार है। जब भी हम अपने मन में फूलो के बारें में सोचते है, तो हमारी आँखों के सामने एक भिन्न भिन्न प्रकार रंगो के फूली आकर्तियाँ उभरने लगती है। यह हमारे आस पास के वातावरण और प्रकृति को सुन्दर बनाते है। यह अपनी सुंदरता के लिए आज पूरी दुनिया में उगाया जा रहा है। भारत में भी गेरबेरा की खेती व्यापक रूप से की जा रही है। चलिए जानते है इससे जुड़ी सभी जानकारियां हिंदी में –

Gerbera Flower Meaning in Hindi

जरबेरा का फूल सामान्य डेज़ी परिवार से सम्बंधित है। यह मासूमियत और पवित्रता के साथ साथ सुंदरता का प्रतिक है। हालाकिं जरबेरा का मतलब ख़ुशी भी होता है। जरबेरा के फूल के बारे में ऐसा माना जाता है, की इनके रंग बिरंगे फूल तनाव कम करते है। जरबेरा का फूल उत्साह का प्रतिक भी माना जाता है। जिसकी वजह इसके दिलकश रंग है। अगर आप किसी अपने से मिलने जा रहे है, या फिर जिससे प्यार करते है, उसके लिए जरबेरा और डेज़ी के फूलों का गुलदस्ता ले जाना चाहिए, यह सामने वाले व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।

जरबेरा का फूल की जानकारी 

जरबेरा का फूल बहुत सुन्दर और आकर्षक होने के साथ साथ यह बहुत लोकप्रिय फूलों में से एक है। जरबेरा के फूल का हिंदी अर्थ पवित्रता और शक्ति को दर्शता है। इसका उपयोग ज़्यदातर सजावट और खेती करने के लिए किया जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है।

जब इसके फूल खिलते है, तो यह अपनी और मधुमक्खियों, और तितलियों को आकर्षित करता है। यह फूल का पौधा एस्टेरसिया (Asteraceae) (डेज़ी परिवार) से सम्बन्ध रखता है। जरबेरा का पौधा मुटियासी (Mutisieae) जनजाति का माना जाता है।

जरबेरा फूल का नाम जर्मन के वनस्पतिशास्त्री और चिकित्सा चिकित्सक वैज्ञानिक ट्रुगोट गार्बर के सम्मान में रखगे गया था। जरबेरा को सबसे ज्यादा दक्षिण अमेरिका, एशिया, और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। यह फूल अफ्रीका का मूल निवासी है। जरबेरा को अफ्रीकी डेज़ी के रूप में जाना जाता है।

इसका सबसे पहला वर्णन वैज्ञानिक कर्टिस की वानस्पतिक पत्रिका में वनस्पति शास्त्री जे. डी. हुकर द्वारा किया गया था। सन 1889 में जब इसका वर्णन मिला तो उन दिनों इसे दक्षिण अफ्रीकी प्रजाति में पाया जाने वाला ट्रांसवाल डेज़ी या बार्बेरियन डेज़ी के रूप में भी जाना जाने लगा था।

जरबेरा का फूल अलग अलग प्रजाति के अनुसार अलग अलग रंगो में उगाया जाता है। जिसमे प्रमुख सफ़ेद, नारंगी, पीला, और गुलाबी रंग शामिल है। इसका एक फूल सेकड़ो छोटे छोटे फूलो की पत्तियों से मिलकर बनता है। इस फूल की गोलाई
आकर में लगभग 7-12 सेंटीमीटर तक होती है।

जरबेरा फूल के उपयोग और फायदे 

  1. जरबेरा के फूल का उयपगो आप किसी को गुलदस्ते में देने के लिए कर सकते है। इसके ताजे फूलो के गुलदस्ते बाजार में बने बनाये मिलते है।
  2. जरबेरा या डेज़ी जरबेरा का उपयोग शादी समारोह में सजावट के लिए किया जाता है। यह फूल अन्य फूलो से महंगे होते है।
  3. इसके पत्तो का इस्तेमाल कुछ आयुर्वेदक औषिधियों में भी किया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार यह आमतौर पर दस्त जैसी बिमारियों की दवाइयां बनाए के काम में लिया जाता है।
  4. इसके फूल को कई रेस्टुरेंट और होटलो में सजावट के लिए रखा जाता है। इसका कारण यह है, की अगर आप इस फूल को पानी के अंदर भी रख देतें है, तो यह लगभग दो हफ्ते तक हरा भरा रहता है।

Gerbera Flower inoformation in Hindi

जरबेरा की खेती के बारें में 

1. जरबेरा की खेती हमेशा पॉलीहॉउस की जाती है। इसकी खेती से पहले आपको अपने खेत की मिटटी की जाँच करनी चाहिए। इस पौधे को रेतीली मिटटी पसंद होती है। जिससे की मिटटी भुरभुरी हो और पौधे अच्छे से बढ़वार करें।

2. मिटटी में अच्छी तरह से जैविक खाद को मिला लें। पुरे खेत में खाद बिखेरकर उसमे पौधे लगाने के लिए मेड़ बनायीं जाती है। मेड़ की ऊंचाई जमीन से लगभग आधा मीटर ऊँची होनी चाहिए। जिससे की अगर किसी वजह से खेत में ज्यादा पानी भर जाएँ, तो आपके पोधो को किसी भी तरह का नुक्सान ना हो।

3. मेड़ के बिच की दुरी लगभग एक हाथ होनी चाहिए। इस तरह से पुरे खेत की लम्बाई और चौड़ाई को ध्यान में रखते हुए। मेड़ बनायीं जाती है। मेड़ बनाए के लिए आप पावर कल्चर का इस्तेमाल भी कर सकते है।

4. जरबेरा की पौध बनाए के लिए टिश्यू कल्चर को भी अपनाया जाता है। टिशू कल्चर द्वारा जरबेरा के बीजो से पोधो को तैयार करके इन्हे, एग्रीकल्चर ट्रे में लगाया जाता है। इससे पहले इस ट्रे में कॉकपिट भरा जाता है। क्योकिं कॉकपिट में पौधे बहुत जल्दी बढ़वार करते है।

5. लगभग दो या तीन सफ्ताह बाद इन पोधो को दूसरी बड़ी ट्रे में बदल दिया जाता है। इसके बाद इन्हे एक नियंत्रित तापमान में रखकर बड़ा किया जाता है। लगभग एक महीने में पौधे जमीन में लगाने लायक हो जाते है।

6. फिर इन पोधो को एग्रीकल्चर ट्रे से निकलकर मेड़ो पर लगाया जाता है। मेड़ पर पोधो को लगाने से पहले आपको यह ध्यान रखना चाहिए। की प्रत्येक पौधे की दुरी लगभग 30 सेंटीमीटर से कम नहीं होनी चाहिए।

7. जरबेरा के पौधे को फूलो के विकास में पानी सबसे अहम् भूमिका निभाता है। मौसम के अनुसार इस पौधे को पुरे दिन में लगभग एक या दो लीटर पानी की आवश्यकता होती है। इन पोधो को फब्बारे की मदद से पानी की छिड़काब करना चाहिए। इससे वातावरण में नमी बनी रहती है।

8. एक दिन में लगभग दो बार पानी का छिड़काब होना चाहिए। इन पोधो पर लगभग दो से तीन महीने में फूल आना शुरू हो जाते है। जब पौधे पर फूल आना शुरू होतें है, तो इन दिनों इन पोधो को देखरेख की बहुत ज्यादा जरुरत होती है।

9. क्योकिं इसके फूल किट पतंगों को अपनी और आकर्षित करते है। किट पतंगों से बचने के लिए पुरे खेत में ट्रिकोडर्मा कार्ड को लटका दिया जाता है(एक तरह का पीला कार्ड जो किट पतंगों को अपनी और आकर्षित करता है) किट इस पीले रंग के कार्ड पर आकर चिपक जाते है। इससे किसानो को किट पहचानने में मदद मिलती है।

10. कीटनाशक दवाइयां लगाने से पहले कृषि वैज्ञानिको की सलाह लेनी जरुरी होती है। किसानो को समय समय पर पोधो का निरिक्षण करते रहना चाहिए। जिससे की पौधे पर होने वाले किसी भी तरह के रोग के बारे में तुरंत पता लग जाएँ।

11. वर्तमान में आधुनिक तकनीक और पॉलीहॉउस के जरिये किसी भी प्रदेश में जरबेरा की खेती करना बहुत आसान हो चूका है। पौध लगाने के तीन महीने बाद पोधो पर फूल आना शुरू हो जाते है। और जरबेरा की सफल फसल शुरू हो जाती है। फिर किसान इन फूलो को मंडी में ले जाकर बेच सकता है।

12. फूलो को तोड़ने के का एक सही तरीका होता है। इस फूल को बहुत ही सावधानी से इसके तने से पूरी डंडी सहित तोड़ा जाता है। इसके बाद जब फूल अधिक मात्रा में तोड़ लिए जाते है। तो इसकी पत्तियों पर पॉलीथिन चढाई जाती है। जिससे की इसकी पत्तियों को किसी भी तरह का नुक्सान ना हो। इससे सही सलामत फूल मंडी तक पहुंच जाते है।

13. जरबेरा के फूलो को अगर एक सही तापमान में रखा जाएँ, तो यह लगभग एक से दो सफ्ताह तक हरा भरा रहता है। जरबेरा के फूल में पोषक तत्वों की कमी पायी जाती है। अगर पौधे में नाइट्रोजन की कमी हो जाती है, तो इससे पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है, और पौधे की बढ़वार रुक जाती है।

14. अगर पौधे में फास्फोरस की कमी हो जाती है, तो इसकी कमी से पत्तियां छोटी होने लगती है, और इनका रंग बैंगनी होने लगता है। पोटाश की कमी के कारण इसकी पत्तियां झुलसने लगती है। यह लक्षण पुरानी पत्तियों में सबसे ज्यादा दिखाई देते है।

15. कैल्शियम की कमी होने के कारण पौधे में पत्तियों के किनारे कटे फाटे होने लगते है। यह सबसे ज्यादा पौधे की नई पत्तियों को ख़राब करता है। मैग्नीशियम की कमी होने पर पत्तियों पर धारियां बनना शुरू होने लगती है। और इनकी नसों के बीच में पीले रंग की धारियां बन जाती है।

16. जरबेरा के पौधे में अगर सल्फर की कमी हो जाती है, तो इसके कारण पत्तियां सफ़ेद होना शुरू हो जाती है। इसके अलावा ज़िंक की कमी होने पर फूल की पत्तियाँ का रंग सफ़ेद होने लगता है। मेगनीज की कमी के कारण फूलो की पत्तियों में छोटे छोटे धब्बे बनना शुरू हो जाते हैं।

17. अगर पौधे में बोरोन की कमी हो जाती है, तो इसके कारण फूलो और पोधो की पत्तियां छोटा होना शुरू हो जाती और धीरे धीरे यह मुड़ने लगती है। अगर पौधे में आयरन की कमी आ जाती है, तो इससे पत्तियों के बीच में छोटे छोटे हरे धब्बे बनना शुरू हो जाते है। इसकी कमी से सबसे ज्यादा नई पत्तियां प्रभावित होती है। पौधे में कॉपर की कमी से भी पत्तियां मुड़ना शुरू हो जाती है।

18. अगर आपको अपने पोधो में इस तरह के कोई लक्षण दिखाई देने लगते है। तो आपको जरुरत है, इनको पोषक तत्व देने की। इसके लिए आप किसी कृषि सम्बन्धी व्यक्ति से मिल सकते है। या फिर अपनी निकटम कृषि कार्यालय में जाकर भी सुझाव ले सकते है।

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